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Dera Baba Murad

  जै बाबा शेरे शाह जी | जै बाबा मुराद शाह जी | जै बाबा लाडी शाह जी

 

बापू जी ने साईं जी को अपना मुरीद बना लिया और अपने पास ही रख लिया. बापू जी ने रोज़ इम्तिहान लिए और साईं जी को पक्का करते गए. बापू जी के पास एक और बच्चा भी रहता था, जिसका नाम था मोहन जो उनका रिश्तेदार था. मोहन भी उनका मुरीद बनना चाहता था और उनकी पीढ़ी में आगे चलना चाहता था. पर चलता वही है जिसे गुरु खुद चुने, और जिसका गुरु के लिए पूरा समर्पण हो. बापू जी रोज़ अपने शरीर पर दवाई लगाते थे क्योंकि एक बार बापू जी ने अपने आप को आग लगा ली थी जब उन्हें विवाह के लिए ज़ोर लगाया गया था. बापू जी अक्सर आवाज़ लगा कर मोहन और साईं जी को पास बुलाते, पहले मोहन को पूछते "तू कौन है ?" मोहन कहता था "मैं आपका बच्चा हूँ". उसमे रिश्तेदारी का घमंड था, बापू जी कहते फिर यह दवाई जो हाथ पर लगी है इसको चाट के दिखाओ. मोहन डर जाता और मना कर देता. बापू जी फिर साईं जी को पूछते "लाडी तू कौन है ?" साईं जी कहते "आपके दर का दरवेश" बापू जी कहते फिर यह दवाई चाट, साईं जी ने चाटने लग जाना, साईं जी को ऐसे लगता जैसे वह आइस क्रीम खा रहे हों.

अक्सर जब भी साईं जी बापू जी के डेरे से बहार जाते तो उनकी आज्ञा लेकर जाते और जब वापिस आते तब बाहर आकर एक आवाज़ देते "बापू मैं आ गया". जब तक बापू जी ने "आजाओ अंदर" नहीं कहना तब तक साईं जी डेरे के बाहर खड़े रहते फिर चाहे रात हो जाए या सवेरा. कभी कभी बापू जी गर्मियों के दिनों में लकड़ी की सीढ़ी छत से लगा लेते और नीचे रेत बिछवा देते. रेता गर्मी के कारण गर्म होता था. फिर उन्होंने पहले मोहन को आवाज़ लगानी और पूछना "मोहन तू कौन हैं ?". मोहन ने कहना "आपका बच्चा" बापू जी ने कहना फिर सीढ़ी चढ़, पर उल्टी चढ़नी है. मोहन ने कहना बापू जी मैं गिर जाऊंगा और मना कर देना. फिर बापू जी ने साईं जी से पूछना "लाडी तू कौन है ?" साईं जी ने कहना "आपके दर का दरवेश", फिर बापू जी कहते यह सीढ़ी चढ़ लेकिन उल्टी. साईं जी ने पहले अपने गुरु (बापू जी) को माथा टेकना फिर पौड़ी के पीछे से टाँगे फंसा फंसा कर चढ़ने लग जाते. जब ऊपर तक पहुँच जाते तब बापू जी लात मारते और साईं जी रेत पर गिर जाते. जब साईं जी उठने लगते तब बापू जी कहते पड़ा रह. साईं जी अपने गुरु की आज्ञा समझ कर लेटे रहते, लोगों को देख कर ज़ुल्म लगता था पर साईं जी को ऐसा लगता जैसे वह ठन्डे घास पर पड़े हों.

साईं जी एक बड़े ज़ैलदारों के परिवार से थे, और एक बार गुरूर में आकर वह किसी से यह बात कह बैठे, तब बापू जी ने चौंक में कांच की बोतल पत्थर पर मारी, कांच बिखर गया. बापू जी कहते चल लाडी आज तेरा नाच देखें. लोगों ने बापू जी से माफ़ी देने के लिए प्राथना की पर बापू जी बोले मैं इस में से ज़ैलदारी की बू निकाल रहा हूँ. साईं जी ने हुकम माना और नाचते रहे। नाच नचाने वाला भी कैसा होगा और नाचने वाला भी कैसा होगा.

“गुरु अगर ज़हर भी दे तो करूँ शुक्राना, कोई अपना समझ कर ही सज़ा देता है“

फकीरी बहुत मुश्किल है कोई लाखों में से एक ही गुरु के रास्ते पर संपुर्ण चल सकता है. और जो चल जाता है वह सब पा जाता है. ऐसे ही समय निकलता रहा एक बार साईं जी की नज़र थोड़ी कमज़ोर हो गयी और एक डॉक्टर उनका चश्मा बनाने के लिए आ गया, बापू जी ने डॉक्टर को कहा "मशीन बाहर ले जाओ, यह आंख यार की है उसकी मर्ज़ी है इसे देखने दे, उसकी मर्ज़ी है इसे अंदर से देखने दे. साईं जी ने ऐसी निभाई अपने मुरशद के साथ कि शायद ही आज के ज़माने में कोई निभा सके। एक बार सर्दियों की बात है, सुबह 5 बजे बापू जी ने साईं जी से पूछा, कि कहीं आस पास गन्ने भी होते हैं क्या, आज खाने का दिल हैं। साईं जी ने एक पतला चोला डाला हुआ था, साईं जी उसी समय पैदल बाहर निकल गए और बहुत दूर तक खेतों की तरफ चले गए। कुछ घंटों के बाद ठण्ड से ठिठुरते हुए गन्ने लेकर वापिस लौटे। बापू जी ने साईं जी को गरम चाय पिलाई और आराम करने को कहा. फिर कुछ दिन बाद बापू जी ने 1 दिन के लिए बाहर जाना था, वह देखना चाहते थे कि जिस तरह साईं जी उनके सामने उनकी बात मानते हैं, क्या उनके सामने ना होने पर भी उसी तरह रहते हैं कि नहीं, दरबार में एक जगह कीड़े मकौड़ों का ढेर लगा हुआ था, बापू जी ने हाथ से छोटा सा इशारा उस तरफ किया और कहा बैठो मैं आता हूँ। साईं जी ने देखा उस तरफ तो कीड़े हैं, लेकिन वह वहीँ पर बैठ गए, और पूरा दिन बैठे रहे जब तक बापू जी वापिस नहीं आए, जब बापू जी वापिस आए तो उन्हों ने साईं जी को गले से लगा लिया, कहा जाता है कि गुरु अपने मुरीद को सुई के नक्के में से निकालता है, तब जाकर मुरीद भगवान के रुतबे पता है।