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Dera Baba Murad

  जै बाबा शेरे शाह जी | जै बाबा मुराद शाह जी | जै बाबा लाडी शाह जी

 

गुरदास जी जब भी अपनी पत्नी मंजीत जी के साथ दरबार आते तो साईं जी अक्सर उन्हें कहते “चंडीगढ़ कोठी डाल लो, गाओं में उड़ती है धूड़” गुरदास जी तब पटिआला रहते थे, उन्हें समझ नहीं आता था कि साईं जी ऐसा क्यों कहते हैं। फिर एक दिन साईं जी ने उन्हें पास बिठाया एक कागज़ लिया उस पर खुद लिखा, "गुरदास मान रेजिडेंट ऑफ़ चंडीगढ़, नेशनल अवार्ड विनर, साहिल किनारा" और उन्हे दे दिया। उस समय कोई भी चीज़ हासिल नहीं थी, पर वह कागज़ नहीं एक आशीर्वाद था, फिर कुछ साल बाद उन्होंने सोचा कि एक घर लिया जाए, जब उन्होंने ढूंढा तो चंडीगढ़ में उन्हें एक घर पसंद आया, उन्होंने साईं जी से पूछा कि “बाबा जी एक घर मिल रहा है”, साईं जी ने कहा फिर ले लो, और अपनी जेब में हाथ डाला, पैसे निकाले और उनकी झोली में डाल दिए, जिसे गुर प्रसाद कहते हैं, उस घर का नाम था साहिल किनारा, जिसका मतलब गुरदास जी को बाद में पता चला कि "चंडीगढ़ कोठी डाल लो, गाओं में उड़ती है धूड़" का क्या मतलब था, और कुछ समय बाद उन्हें नेशनल अवार्ड से भी नवाज़ा गया।

“ज़र्रे को महज़ क़तरे से दरिया बना दिया। मुझको तेरे करम ने साईं, क्या से क्या बना दिया”

नकोदर की एक दुकान का वाक्य है, साईं जी उस दुकान पर भागे भागे गए, दुकान वाले उठ कर खड़े होगए कि साईं जी आए हैं, साईं जी कभी इधर जाएँ और कभी उधर जाएँ, फिर कहने लगे ठीक है हो गई गाड़ी सीधी, हो गई गाड़ी सीधी, कहकर वापिस चले गए, दुकान वालों को समझ नहीं आया कि साईं जी भागे भागे क्यों आए थे और क्या कहकर चले गए। थोड़ी देर बाद दुकानदार को उसकी बेटी और जमाई का अमेरिका से फ़ोन आया और बताया कि उनका एक्सीडेंट हो गया था, गाड़ी ने 6 पल्टियाँ खाई और सातवीं में अपने आप सीधी हो गयी और बताया कि एक खरोच भी नहीं आई। उस दुकानदार की आखों में आंसू आ गए और साईं जी का मन में शुक्रिया किया। साईं जी ने जिसको भी दिया झोलियाँ भर कर ही दिया है। साईं जी के भतीजे इंग्लैंड में रहते हैं और उन्होंने साईं जी को भी आने का निमंत्रण दिया. एक बार साईं जी उनके पास इंग्लैंड गए हुए थे, नुसरत फ़तेह अली खान (पाकिस्तान के प्रसिद्ध सूफी कव्वाल) भी वहां आए हुए थे| साईं जी ने उनके पास बुलावा भेजा कि वह कव्वाली सुनना चाहते हैं| नुसरत ने बहुत पैसे मांग लिए और कहा मैं इससे कम नहीं लूंगा| साईं जी ने कहा ठीक है ले लेना आ जाओ| जब नुसरत गाने लगा तो साईं जी ने इतने पैसे उनके ऊपर वारे कि नुसरत घुटनों तक भर गया, जब प्रोग्राम खत्म हुआ तब साईं जी ने पैसे निकाले और जितने नुसरत ने मांगे थे वह भी देते हुए कहा यह लो तुम्हारी फीस, नुसरत हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और कहने लगा कि बाबा जी बहुत दे दिया आपने, मेरे पास तो इतनी गठरियाँ ही नहीं हैं इतने पैसे बाँधने के लिए, बस करो बख्शो. और जब भी नुसरत को पंजाब का कोई कव्वाल किसी भी देश में मिलता तो वह साईं जी का ज़िकर जरूर करता कि आज के ज़माने में ऐसे फ़कीर नहीं देखे. फ़कीर मांगने से कुछ नहीं देता, बिन मांगे सब दे देता है.

“जितना दिया सरकार ने मुझको, उतनी मेरी औकात नहीं। यह तो करम है उनका वरना, मुझमे तो कोई ऐसी बात ही नहीं”

साईं जी ज्यादा तर वक़्त हीर ही पढ़ते थे, वारिस शाह जी वह फ़क़ीर थे जिन्होंने हीर ग्रन्थ लिखा था. जिसको हर फ़क़ीर ने पढ़ा, जिसमे सच्चे इश्क़ के जरिये सीधा रब से जुड़ती तार की बात की गयी है. एक बार साईं जी ने हीर की एक किताब ली, जिसके पहले पन्ने पर उन्होंने लिखा था "बाबा मुराद शाह जी की अपार कृपा रहेगी - सेवादार गुलाम" साईं जी अपने आप को गुलाम लिखते थे. गुरदास मान जी एक बार जाने लगे तो साईं जी ने वह हीर किताब गुरदास जी को दी और कहा "इसे बीच बीच में से पढ़ना, क्योंकि जिसने पढ़ली हीर वह हो गए फ़क़ीर" फिर एक दिन गुरदास जी रियाज़ कर रहे थे, गुरदास मान जी रियाज़ के समय ज्यादा तर वक़्त हीर ही गाते हैं, तो मंजीत मान जी का फ़ोन आया और उन्होंने पूछा "हम फिल्म वारिस शाह बना लें ?" गुरदास मान जी ने देखा उनके हाथ में हीर की किताब खुली थी जिसमे उस समय वही पन्ना खुला हुआ था जिस पर साईं जी ने लिखा था बाबा मुराद शाह जी की अपार कृपा रहेगी सेवादार गुलाम, गुरदास मान जी वह इशारा समझ गए कि यह गुरु का आशीर्वाद है और कहा मंजीत शुरू कर दो.

फिर एक दिन फिल्म के लिए हीर के बैंत रिकॉर्ड करने थे, चंडीगढ़ जिसके लिए सुबह 11 बजे का समय रखा गया. गुरदास जी किसी को बिना बताए सुबह सुबह नकोदर चले गए साईं जी के पास, पीछे सभी को गुस्सा चढ़ गया क्योंकि पहले रिहर्सल होनी थी फिर रिकॉर्डिंग और समय कम था, साईं जी सब कुछ जानते थे, जब गुरदास जी साईं जी के पास पहुंचे तब साईं जी ने कहा "गुरदास फ़क़ीर वह होता है जो चाहे सो करे, और जो चाहे सो करावे" गुरदास जी ने आशीर्वाद लिया और चंडीगढ़ पहुंचे. उनको रिहर्सल के लिए कहा गया और पन्ने दिए जहाँ से देख कर रिकॉर्डिंग करनी थी. गुरदास जी ने बिना रिहर्सल, बिना पन्ने पढ़े सारी हीर रिकॉर्ड करदी, सब देख कर हैरान हो गए कि कैसे उन्होंने बिना देखे सारी हीर रिकॉर्ड कर दी, और जो गाया उसे दुबारा गाने की जरुरत नहीं पढ़ी. एक तरह से सारी हीर ही याद करवा दी थी साईं जी ने. फिर जब फिल्म बन गयी सब कुछ हो गया तब साईं जी ने कहा "गुरदास इतने बड़े फ़क़ीर की यादगार बना देना भी बहुत बड़ी बात होती है, रब तेरे ते किर्पा करे"