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Dera Baba Murad

  जै बाबा शेरे शाह जी | जै बाबा मुराद शाह जी | जै बाबा लाडी शाह जी

 

बाबा मुराद शाह जी हर साल मेला भी करवाते थे जिस पर कव्वाली होती, और उस समय कुछ ही गिनती के लोग आते। कव्वाली की महफ़िल हर साल एक मलेरकोटला के कव्वाल शुरू करते थे. उस समय के मुताबिक बाबा जी के पास जो पैसे थे वह उनको दिए और कहा मेरे बाद लाडी शाह जी यहाँ आएंगे और तुम्हारा हिसाब तुम्हारे बेटे और पोतों को कितने गुना करके लौटाएंगे. आज भी वही कव्वालों की पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है और अब भी मेले पर वही कव्वाल कव्वाली शुरू करते हैं. ऐसे ही समय निकलता रहा, बाबा मुराद शाह जी हमेशा नंगे पाऊं चलते थे. बाबा शेरे शाह जी ने एक बार कहा था मुराद जिस दिन तुम्हारे पैर में काँटा चुभ गया समझ लेना मैं दुनिया छोड़ गया. एक दिन चलते चलते बाबा मुराद शाह जी के पैर में काँटा चुभ जाता है. बाबा जी से अपने मुरशद का विछोड़ा सहा ना गया और वह भी जल्दी ही 28 साल की उम्र 1960 में शरीर छोड़ गए. बाबा मुराद शाह जी ने 24 साल की उम्र में फकीरी शुरू की और 28 साल की उम्र में चोला छोड़ दिया, सिर्फ 4 साल में वली हो जाना बहुत बड़ी बात है.

“ना महंगी मिलती है ना सस्ती मिलती है, यह जो मस्ती है वह मिटाकर हस्ती मिलती है”

बाबा जी हमेशा चाहते थे कि उनकी मज़ार उसी जगह बने जहाँ शेरे शाह जी ने फकीरी की, जहाँ बाबा जी खुद भी रहे. पर उस समय वह सरकारी ज़मीन थी. लोगों ने सोचा कि बाबा जी की मज़ार अगर यहाँ बनाई तो सरकारी लोग मज़ार हटा ना दें, इतने बड़े फ़क़ीर की जगह के साथ अनादर ना हो यह सोच कर लोगों ने बाबा जी की मज़ार शमशान घाट में ही बना दी. बाबा जी जिस औरत को अपनी माँ कहते थे उसे सपने में दर्शन दिए और कहा "मेरी मज़ार वहां क्यों नहीं बनाई जहाँ मैंने कहा था" माता ने कहा “सरकारी लोग आपत्ति कर रहे थे”. बाबा जी ने कहा मेरे जितने भी कपडे और वस्तुएं तुम्हारे घर पड़ी हैं उन्हें एक घड़े में डालकर वहां रखो, और वहां भी मेरी जगह बनाओ, मैं खुद देखता हूँ कौन हटाता है. ऐसे ही हुआ और वहां भी बाबा जी की जगह बनाई गयी जहाँ बाबा जी खुद चाहते थे. इस जगह को आज हम डेरा बाबा मुराद शाह कहते हैं. बाबा मुराद शाह जी की सिर्फ एक ही फोटो थी वह भी उन्होंने फाड़ दी थी मगर उनके भाई ने उस फोटो को जोड़कर दुबारा रखा था. बाबा शेरे शाह जी की दरगाह भी पंजाब (हिंदुस्तान) में फ़िरोज़पुर के पास है.

लाडी साईं जी बाबा मुराद शाह जी के भतीजे थे जिनको बाबा मुराद शाह जी ने खुद चुना था. उनका नाम विजय कुमार भल्ला था और लाडी साईं नाम उनके मुर्शद ने उन्हें दिया था, लाडी साईं जी का जन्म 26 सितम्बर 1946 को हुआ था उनकी उम्र सिर्फ 14 वर्ष थी जब बाबा मुराद शाह जी ने शरीर छोड़ा. जैसे फ़क़ीर ने कहा था इस खानदान में दो भगवान का नाम लेने वाले पैदा होंगे, तो पहले हुए बाबा मुराद शाह जी और दूसरे हुए लाडी साईं जी. एक बार की बात है साईं जी अपनी बुआ के पास कुछ दिन रहने के लिए राजस्थान गए हुए थे, और बुआ जी के बच्चों के साथ खेल रहे थे कि अचानक उनकी आवाज़ बदल गयी, पहले तो बच्चों को मज़ाक लगा पर फिर उन्होंने बुआ जी को बुलाया तो उन्हों ने देखा कि बाबा मुराद शाह जी जैसी आवाज़ आ रही थी. कहते “बहन मेरी मज़ार सूनी पड़ी है, लाडी को कल सुबह पहली गाडी में बिठा देना और वापिस भेज दो”. लाडी साईं जी वापिस नकोदर पहुंचे और खुद ही मज़ार की तरफ चले गये, उनका शरीर तप रहा था और ऐसे लग रहा था जैसे शरीर में से आग निकल रही है और कह रहे थे मुझे फ़क़ीर बनना है. जब उन्हें घर लेकर आए तो उन्हें बुखार हो गया. साईं जी के पिता जी (बाबा मुराद शाह जी के बड़े भाई) बाबा मुराद शाह जी की तस्वीर के पास गये और कहने लगे, आप ये लड़का लेना चाहते हैं तो लेलो पर इसे ठीक करदो. तस्वीर में से आवाज़ आई "लाला मैंने कहा था ना, उस दिन देखूंगा तुम्हे मारते हुए जिस दिन तुम्हारे बेटे तुम्हारे सामने फ़क़ीर बनेंगे, अब नहीं मारना ?" उनके भाई ने कहा मेरी गलती थी मुझे माफ़ करिये, अब यह लड़का आपका है. साईं जी ने ठीक महसूस किया और सो गए.

कुछ साल बीते साईं जी जवान हुए, कहते हैं भगवान् की राह पर चलने के लिए गुरु की ज़रूरत होती है. बाबा मुराद शाह जी की पूरी कृपा और शक्ति थी साईं जी के साथ लेकिन उसको जागृत करने के लिए एक सच्चे सतगुरु की ज़रुरत थी. साईं जी गुरु की खोज के लिए घर से निकल गए. साईं जी कई जगह गए कभी काशी कभी हरिद्वार, और एक बार उन्होंने गात्रा भी गले में डाला, बहुत ढूँढा पर कोई ऐसा ना मिला जो तीसरी आँख खोल सके. फिर एक दिन साईं जी बापू ब्रहम जोगी जी के डेरे नकोदर में पहुंचे. बापू जी गुग्गा जाहर पीर जी की साधना करते थे और गुग्गा जाहर पीर को पूरी तरह पूर्ण थे. साईं जी उनके डेरे जाकर दूर बैठ गए. बापू जी ने लाडी कह कर आवाज़ लगायी, पास बुलाया और पूछा "मुराद शाह बनेगा ?" साईं जी ने कहा जी “हाँ बनूँगा”. बापू जी बोले “ठीक है अब तुझे मुराद शाह बना कर ही भेजेंगे” और कहा, जाओ अपनी माँ से भी आशीर्वाद ले आओ, क्योकि फ़क़ीरी तब तक हासिल नहीं होती जब तक माँ उसे खैर ना डाले। जब साईं जी अपनी माँ के सामने आए तब उन्होंने जोगी जैसा भेस बनाया हुआ था, माँ के लिए वह कितना मुश्किल समय रहा होगा जिसका बेटा हमेशा के लिए पराया होजाना था, और कभी दुबारा घर नहीं आना था, पर फिर भी माँ ने आशीर्वाद दिया और कहा "जा बेटा, अपनी बाप की पग्गड़ी को दाग मत लगाना, फ़क़ीरी करनी है तो करके दिखाना"