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Dera Baba Murad

  जै बाबा शेरे शाह जी | जै बाबा मुराद शाह जी | जै बाबा लाडी शाह जी

 

कहते हैं गुरु ने जिसे चुना हो वह खुद एक दिन अपने गुरु के पास पहुँच ही जाता है, साईं जी ने भी जिनको चुना वह भी ऐसे ही दरबार आए जिनका नाम है गुरदास मान (विष्व प्रसिद्ध गायक और एक बहुत ही नेक दिल इंसान). एक बार की बात है सुरिंदर शिंदा जी और पूर्ण शाह कोटी जी साईं जी के पास बैठे थे. साईं जी ने सुरिंदर जी को कहा "वह जो नौजवान डफली सी बजाता घूमता है वह कहाँ है", फिर कहा "तुझे तो मिलता ही होगा, उसे कहना सारी दुनिया में तो तू घूम रहा है एक जगह वह भी है जहाँ तुम्हारी इंतज़ार हो रही है".

एक बार 1982 में फिल्म "ऊचा दर बाबे नानक दा" की शूटिंग पर शिंदा जी ने गुरदास मान जी के साथ बात की, कि आपको हमारे साईं जी बहुत याद करते हैं नकोदर वाले. गुरदास जी ने निम्रता से कहा जब उनकी मर्ज़ी होगी तब ज़रूर चलेंगे. फिर एक दिन गुरदास मान जी को सपना आया और उन्होंने एक दरबार देखा जहाँ तालाब बना हुआ था और संगत का मेला लगा हुआ था. सुबह उठे तो शिंदा जी का फ़ोन आया कि आज वीरवार है अगर आपके पास समय हो तो आज चलें ?. मान साहब कहते जी चलते हैं वैसे भी आज मैंने एक सपना देखा. शिंदा जी रास्ते में समझा रहे थे कि साईं जी अगर कुछ दें तो मना मत करना स्वीकार कर लेना. जब दरबार पहुंचे तब गुरदास मान जी ने देखा कि यह तो वही दरबार है जो उन्होंने सपने में देखा था. गुरदास मान जी साईं जी के पास बैठे फिर चलते चलते बातें हुई. साईं जी कहते “गुरदास फिर क्या देखा ?” गुरदास जी कहते यह दरबार तो मैंने सपने में ही देख लिया था. साईं जी बोले बस बस ज्यादा परदे नहीं खोलते. फिर साईं जी ने अपना चश्मा उतार कर गुरदास जी के लगाया और पुछा देखना ठीक है ? मान साहब कहते थोड़ा ढीला है, साईं जी ने उसी समय वापिस खींच लिया और कहा जिस दिन फिट आगया उस दिन ले लेना. जो एक बहुत बड़ा इशारा था.

फिर 5 साल बीत गए गुरदास जी नकोदर नहीं आये और अपने काम में व्यस्त होगए. उस समय गुरदास जी को बहुत चिंता रहती थी क्योंकि उनकी पत्नी मंजीत मान जी का Thyroid के कारण वजन बहुत बढ़ गया था. उन्होंने बहुत डॉक्टरों के पास दिखाया, हर जगह इलाज करवाया पर कोई हल ना निकला, फिर गुरदास जी के एक दोस्त दविंदर शायर ने खन्ना शहर से फ़ोन किया और बताया कि वह एक बहुत पहुंचे हुए पंडित को जानते हैं और आप आ जाओ. गुरदास जी और मंजीत जी उस समय पटियाला रहते थे और वह अगले ही दिन खन्ना के लिए निकल गए पहुँचते ही पंडित को मिले, और पंडित ने बताया कि उनपर तो राहु केतु का चक्कर है और बहुत सारे उपाय लिख दिए, फिर वह निराश होकर वापिस पटियाला जाने लगे तो गुरदास जी बोले मंजीत एक जगह और रह गयी वहां भी चलें, जहाँ 5 साल पहले गए थे नकोदर ?. मंजीत जी कहते चलो, जाते जाते गुरदास जी अपने मन में सोच रहे थे कि वह बाबा जी को क्या अर्पित करेंगे, क्यों कि जल्दी जल्दी में उन्होंने कोई प्रसाद भी नहीं लिया था. गुरदास जी ने एक घड़ी बांधी हुई थी जिसमें छोटे छोटे हीरे लगे हुए थे, उन्होंने मन में सोचा कि मैं घडी देदूँगा, गुरदास जी अभी रास्ते में ही थे कि नकोदर में साईं जी के साथ एक लड़का और शरदा जी बैठे थे, साईं जी उनसे पूछ रहे थे कि "आपने कभी हीरों वाली घड़ी देखी है ?" शरदा जी बोले आपकी लीला है आप कुछ भी दिखा सकते हो, साईं जी कहते चलो फिर आज आपको हीरों वाली घडी दिखाते हैं. उस समय मंढाली वाले बाबा जी साईं जी को मंढाली के मेले पर आने का निमंत्रण देने आए और बोले साईं जी हमारे मेले पर सारे कलाकार आ चुके हैं लेकिन अभी तक गुरदास नहीं आया. साईं जी कहते गुरदास भी आने वाला ही है. मंढाली वाले बाबा जी को पूरी बात का पता नहीं था कि साईं जी ने क्या कहा.

फिर मंढाली वाले बाबा जी चले गए और गुरदास मान जी दरबार पहुंचे, प्रवेश किया, साईं जी का मुँह दूसरी तरफ था, गुरदास जी उनको माथा टेकने लगे तो साईं जी बोले पहले बाबा मुराद शाह को माथा टेक कर आ. गुरदास जी ने माथा टेका और साईं जी के पास आकर बैठ गए. शरदा जी बोले, साईं जी गुरदास हमारे पास एक ही बार आया है फिर नहीं आया. साईं जी बोले "यह हमारे पास कहाँ से आते, यह तो राहु केतु के चक्करों में पड़े हैं" गुरदास जी रोना शुरू हो गए और मन ही मन में बोल रहे थे "मुझे बख्श दो, मुझे बख्श दो" साईं जी अपने मुँह से बोल रहे थे "जा बख्श दिया , जा बख्श दिया". गुरु वही है जो बिना बोले बात जाने. इसीलिए बड़े कहते हैं ‘पानी पीये छान के और गुरु बनाइये जानके’. गुरदास जी ने उस दिन देख लिया कि इनसे ऊपर कुछ नहीं, उनको साक्षात् रब की तस्वीर साईं जी में दिखी. साईं जी ने अपनी जेब में से पैसे भर कर निकाले और गुरदास जी को दिए और फिर उनसे पूछा “मंढाली मेला है, वहां गा जाओगे?”. गुरदास जी बोले जो आज्ञा. फिर गुरदास जी जाने लगे तो साईं जी ने आवाज़ लगायी और कहा "घडी" ? गुरदास जी मुस्कुराए घडी उतारने लगे, साईं जी बोले नहीं अपने ही बांधी रख. गुरदास जी कहते नहीं साईं जी आप स्वीकार करो, साईं जी कहते अपने ही बांधी रख, बोले "हाथ पर बंधी और दिल पे बनी एक ही बात है " दिल पर तो बन चुकी थी, गुरदास जी ने फिर निवेदन किया तो साईं जी ने कहा ठीक है फिर बाँध लेते हैं. भगत की बंधी फिर गुरु कैसे छुड़ाए.


“तेरे घर का पता खोजने वाले खुद लापता हो गए देखते देखते, कल जिनके मुक़द्दर में कुछ भी ना था बादशाह हो गए देखते देखते”