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Dera Baba Murad

  जै बाबा शेरे शाह जी | जै बाबा मुराद शाह जी | जै बाबा लाडी शाह जी

 

जितना प्यार साईं जी सभी को करते हैं, उतना ही प्यार साईं जी के मानने वाले भी साईं जी को करते हैं. एक बार एक गरीब औरत साईं जी के लिए कम्बल लेकर आई, साईं जी ने कहा "वापिस ले जाओ, नहीं लेना" वह औरत कम्बल वापिस लेकर घर चली गयी, एक मुरीद ने साईं जी से पूछा कि साईं जी, वह औरत इतनी श्रद्धा के साथ आई थी आपने उसका कम्बल स्वीकार क्यों नहीं किया, साईं जी बोले “उसके अपने बच्चे ठण्ड में सोते हैं, और मेरे लिए कम्बल लेकर आई थी, मैं कैसे ले सकता था”। साईं जी का मुरादें देने का भी अपना ही एक ढंग था, हमेशा कोई छोटा सा बहाना बना कर लोगों को बहुत कुछ दे देते थे। आज के ज़माने में कुछ लेने के लिए बहाने बनाने पड़ते हैं, पर साईं जी देने के लिए बहाने बनाते थे। बहुत पुरानी बात है सरदूल सिकंदर (पंजाबी सिंगर) को बहुत समय से चाहत थी की उनके घर एक बेटा पैदा हो। एक बार वह अमेरिका से बाबा मुराद शाह जी की फोटो बनवा कर दो कप लेकर आए, एक कप उन्होंने साईं जी को दे दिया और एक कप खुद रख लिया। एक दिन साईं जी ने सरदूल जी को फ़ोन किया बोले "सरदूल यार वह कप तो कोई उठाकर ही ले गया, ऐसा कर जो कप तेरे पास है वह देजा" सरदूल जी बोले साईं जी पता नहीं कब दुबारा अमेरिका जाना होगा और कब नया कप लेकर आऊंगा। साईं जी बोले “हम कौनसा फ्री मांग रहे हैं, कप दे जाना और बेटा लेजाना”। सरदूल जी अक्सर मज़ाक में अपने बेटे की तरफ इशारा करके बताते हैं कि यह कप के बदले मिला हुआ है कप जैसा लड़का।

हर इन्सान की तक्दीर भगवान ने पहले ही लिखी हुई है। जिसमे पुराने जन्मों का तप भी मिला होता है। फ़क़ीरी तो साईं जी की पिछले कईं जन्मों से ही चली आ रही थी। गुरदास जी के जुड़ने का भी उन्हें पहले ही पता था। गुरदास जी बचपन से ही भगवान में यकीन रखने वाले और भगवान को मानने वाले इंसान थे, और बिना पाठ पूजा किये खाना नहीं खाते थे। जब स्कूल में गए तब भी उन्हें संगीत का बहुत शौंक था। और टेबल पर ही कुछ न कुछ बजाते रहते। कॉलेज में उन्होंने एक डफली खरीदी, फिर उसके साथ जो गीत उन्होंने कॉलेज में लिखे थे, जैसे "सज्जना वे सज्जना" और "पीढ़ तेरे जान दी" गाते रहते। गुरदास जी की जिंदगी का एक सुनने वाला किस्सा है। एक बार उनके कॉलेज का ट्रिप पिंजोर गया, जहाँ पर सभने उनसे गाने की फरमाइश की, उन्होंने अपनी डफली उठायी और गाना शुरू कर दिया, वहां दिल्ली से भी एक बस आई हुई थी, वह भी उनका गाना सुनने लग पड़े और सबने उन्हें कुछ न कुछ देना शुरू कर दिया और उनकी जेबें भर दी। फिर सब आगे की और चल पड़े, गुरदास जी अकेले ही बैठ गए और अपना सामान और डफली बैग में डालने लगे, तभी एक फ़क़ीर ने आवाज़ लगायी, और गाकर कहा "क्यों दूर दूर रहने हों हज़ूर मेरे कोलों, दस् होया की कसूर मेरे कोलों"। गुरदास जी वहीँ रुक गए, उनके पास गए और जो भी उनकी जेब में था उनके चरणों में अर्पित कर दिया। फ़क़ीर को उनके दिल की सफाई का एहसास हुआ और बोले "दिल के बाज़ार में दौलत नहीं देखी जाती, प्यार हो जाए तो सूरत नहीं देखी जाती, एक तबसम पे निछावर करूँ दोनों जहाँ, माल अच्छा हो तो कीमत नहीं देखी जाती" फिर बोले "उठा कर जेब में डाल ले, जा तुझे रेहमतें दी, जा तुझे बरकतें दी। वह पीरों फ़क़ीरों का आशीर्वाद ही था जो उन्हें रब जैसा मुरशद मिला, फ़क़ीरी मिली, नाम मिला और शौहरत मिली।

“खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार। जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार”

कोई लाखों में से एक ही गुरु का पक्का मुरीद बनता है, जैसे गुरदास मान जी ने बनके दिखाया और निभाया. एक बार की बात है गुरदास जी साईं जी के पास बैठे थे उस समय उनका ‘बूट पॉलिश’ वाला गाना बहुत मशहूर हुआ था, साईं जी कहते "क्या बात गुरदास, सारा दिन टीवी पर बूट पॉलिश वाला गाना ही चलता रहता है " गुरदास जी बोले साईं जी आपकी कृपा है. साईं जी बोले "नहीं गुरु रविदास जी ने तेरे पर बहुत कृपा की है". साईं जी ने कहा याद है वह लड़का जिसके साथ तू फोटो खिंचवा कर आया है, एक बार मुल्लांपुर गांव में गुरदास मान जी का प्रोग्राम हुआ था. प्रोग्राम के बाद बहुत लोग फोटो खिंचवा रहे थे, एक बूट पॉलिश करने वाला लड़का जिसके कपडे फटे हुए थे वह भी फोटो खिंचवाना चाहता था, लेकिन उसे सेवादार आगे आने नहीं दे रहे थे. गुरदास जी की नज़र जब उस पर पड़ी तो उन्होंने बोला कि इसे आने दो. आगे रस्सियां लगी हुई थी गुरदास जी ने कहा "रस्सियां खोल कर स्टेज पर आजा" लड़का स्टेज पर आया उसने अपनी बूट पॉलिश वाली पेटी नीचे रखी तो गुरदास जी बोले "ना नीचे मत रख, जिस तरह मैंने अपनी डफली सीने से लगा के रक्खी है ऐसे ही रखा कर, रोटी रोज़ी है, ना जाने किस भेस में नारायण मिल जाये" उस बच्चे ने फोटो खिंचवाई और गुरदास जी ने जस्सी को कहा कि फोटोग्राफर को पैसे देदेना जिस से बच्चे को फोटो मिल जाए. वह बच्चा बहुत खुश हुआ, साईं जी कहते जिस बच्चे के साथ तू फोटो खिंचवा कर आया है वह बच्चा गुरु रविदास जी का है और उन्होंने तुझे आशीर्वाद दिया है.

“औरों को जो भी मिला अपने मुक़द्दर से मिला है, मुझे तो अपना मुक़द्दर भी तेरे दर से मिला है”

साईं जी की हर बात में एक रमज़ होती थी, एक बार केसरी पगड़ी बाँध कर एक सरदार आया और माथा टेकने लगा, साईं जी ने कहा "ना, माथा नहीं टेकना". उसने कहा पर साईं जी मैं तो पूरी श्रद्धा के साथ आया हूँ, साईं जी ने कहा "यह केसरी निशान हमारे दाता गुरु गोबिंद सिंह जी का है जिन्होंने 4 बेटे वारे, पांचवीं मां वारी, छठा बाप वारिया और सातवां आप वारिया. इस निशान को हमने झुकाना नहीं है अगर माथा टेकना हो तो किसी और रंग की पगड़ी बांध कर आ जाना." साईं जी एक ऐसे फ़क़ीर थे जो हर किसी से प्यार करते थे चाहे दर पर आया कोई सव्वाली हो या कोई जानवर, एक बार साईं जी के शरीर पर एक कीड़ा चढ़ा जा रहा था. एक पास खड़े आदमी ने देखा और कुछ आस पास देखने लगा उसे मारने के लिए. साईं जी कहते “तुम क्या चाहते हो मैं इसे मार दूँ, यह भी उसका जीव है जिसकी जान लेने का हक़ हमें नहीं है”.